`शीशा-ए-दिल` ही नहीं, ‘शीशा-ए-दिमाग’ भी मुमकिन…!
अजय बोकिल भोपाल(मध्यप्रदेश) ***************************************************************** अभी तक दिल का रिश्ता शीशे से ही हुआ करता था,क्योंकि वह शीशे के माफिक टूट फूट जाता था। गाहे-बगाहे तड़क भी जाता था और कभी…