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कोई जग में नहीं पराया

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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पूरी वसुधा इक कुटुंब है,
हमने सबको ही अपनाया।
सीमाएं तोड़ी सरहद की,
कोई जग में नहीं पराया॥

जग पूरा अपना घर-आँगन,
सबसे मानवता का रिश्ता।
सबकी रग में रक्त एक-सा,
कौन मनुज है कौन फरिश्ता॥
पंच तत्व से निर्मित है तन,
सबमें ही इक प्राण समाया।
सीमाएं तोड़ी सरहद की,
कोई जग में नहीं पराया…॥

सब जीवों में एक तत्व है,
जन्म-मरण सबका ही होता।
नहीं अमर कोई इस जग में,
हर इक मानव हँसता रोता॥
आना-जाना है इस जग में,
जीवन क्रम ये चलता आया।
सीमाएं तोड़ी सरहद की,
कोई जग में नहीं पराया…॥

कर्म प्रधान है इस सृष्टि में,
बिना कर्म के रहे न कोई।
पुनर्जन्म भी होता इससे,
कर्म से ही भव मुक्ति होई॥
कर्म करो निष्काम सदा ही,
गीता ने हमको सिखलाया।
सीमाएं तोड़ी सरहद की,
कोई जग में नहीं पराया…॥

गुंथे हुए हम सब रिश्तों में,
प्रेम डोर बांधे रहती है।
स्वार्थ कभी ना लाएं इसमें,
शिक्षा हमको ये कहती है॥
सभी दिशाओं में हमने ही,
मानवता का ध्वज लहराया।
सीमाएं तोड़ी सरहद की,
कोई जग में नहीं पराया॥

सकल विश्व को अपना समझो,
इक-दूजे को गले लगाओ।
भाषा भूषा धर्म जाति की,
सीमाओं को दूर हटाओ॥
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ आदर्श,
हमने ही जग को सिखलाया।
सीमाएं तोड़ी सरहद की,
कोई जग में नहीं पराया…॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

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