कुल पृष्ठ दर्शन : 392

You are currently viewing सार्थक जीवन

सार्थक जीवन

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
******************************************

दर्द बंटाने को औरों का, बोझ उठाना पड़ता है,
उनके खातिर निजता को भी दाँव लगाना पड़ता है।
खो कर के अपने वजूद को परहित में जीवन जीये,
जहर जमाने का सबके हित में हँस-हँस कर जो पीये,
दुनिया की नज़रों में कुंदन बन कर वही निकलता है,
दर्द बंटाने को औरों…॥

ये दुनिया है गहरा दरिया पार उतरना मुश्किल है,
इसकी लहरों में जीवन नैया को खेना मुश्किल है।
सुख की सेज छोड़ कर अँगारों पर सोना पड़ता है,
दर्द बंटाने को औरों…॥

बहुत कठिन है सफ़र ज़िन्दगी पग-पग पर बाधाएं हैं,
पार बहुत होती मुश्किल से कुछ जीवन रेखाएं हैं।
मंजिल को पाने खातिर कितने मंसूबे गढ़ता है,
दर्द बंटाने को औरों…

मानवता दिल में रखकर बस अपना कर्म किए जाओ,
तभी सार्थक है जीना परहित जीवन जीये जाओ।
कुछ बनने खातिर जीवन में मोल चुकाना पड़ता है,
दर्द बंटाने औरों का भी बोझ उठाना पड़ता है…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

Leave a Reply