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नुक्ताचीनी

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:८-८-८-८, अंत गुरु लघु….

होता कुछ का स्वभाव, कहो तो दिखाते ताव,
जाने क्यों वे खाते भाव, लोचना जिनके रूप।

नुक्ताचीन है इंसान, खुद को समझे महान,
दूसरे हैं बेईमान, कहते वो ये दो टूक।

दोष करे छानबीन, ढूंढे रख दूरबीन,
निकालते मीन-मेख, थोड़ी भी हो जाये चूक।

करते वे हतोत्साह, बिन मांगे दे सलाह,
सभी को करे तबाह, होते कुछ ऐसे रुख।

खुद को माने शरीफ,औरों को तो बीप-बीप,
खूब चाहते तारीफ, अजब-गजब ये भूख।

होता हीन भाव रेख मीन-मेखी मन शेष,
अच्छा करे अनदेख, दोष देख जाएं रूक।

सफलता का आनंद, लेने हो गर सानन्द,
कर नजरअंदाज कभी छिप जाओ कूप।

छिद्रान्वेषी ऐसे लोग, मिलते बड़े संजोग,
विश्लेषण करें योग, ध्याये इनके प्रारूप॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।