ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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बसंत पंचमी विशेष….

देखो फिर से आया बसन्त,
नव पल्लव,नवनीत लिए
खुशियों भरी उमंग लिए,
पुलकित यौवन,हर्षित तन-मन
सृजित नित नए ख्वाब लिए।
देखो फिर से…
कूक उठी कोयल मतवाली,
जीवन के नव गीत लिए
अपनों के संग प्रीत लिए,
महक गई फूलों से डाली
हरित पर्ण नव श्रृंगार लिए।
देखो फिर से…
छूट गए तरुवर से पर्णपित,
एक नया इतिहास लिए
नव सृजित पर उपकार किए,
गूंज उठी सरोवर की कल-कल
जीवन का यशोगान लिए।
देखो फिर से…
गुनगुन गाने लगे भँवरे,
कलियों के सँग प्रीत लिए
अपनों के संग गीत लिए,
महक उठी फूलों की खुशबू
रिमझिम-सी बौछार लिए।
देखो फिर से…
मन में उठी उमंग जीने की,
फिर से नव संगीत लिए
उर में एक नई जीत लिए,
उठ,खड़ा हो कहता बसन्त।
फिर वही विश्वास लिए,
देखो फिर से…॥