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बेबस बेकस मजदूर

राधा गोयल
नई दिल्ली
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 जिंदगी की खातिर (मजदूर दिवस विशेष)…..

हम बेबस, बेकस, किस्मत के मारे हैं
कोई नहीं हमारा है प्रभु तेरे सहारे हैं।

हाथों में है हुनर, मगर किस्मत पर ताले हैं,
पैदल चलते-चलते पड़े पाँव में छाले हैं।

खाने को नहीं रोटी और रहने को छत भी नहीं,
महामारी के कारण कोई देता शरण नहीं।

बड़े-बड़े सपने लेकर इस शहर में आए थे,
अट्टालिकाएँ-मन्दिर-मस्जिद सभी बनाए थे।

माना तू जग का निर्माता, सबका भाग्य विधाता,
मैंने भी निर्माण किए, क्या नजर नहीं यह आता ?

आए थे जिस गाँव से हम अनगिन आशाएँ लेकर,
आज कदम फिर उसी ओर बढ़ चले निराशा ढोकर।

भेड़ों की तरह ठूँसा, फिर भी परवाह नहीं है,
दिल में कई घाव हैं, पर होंठों पर आह नहीं है।

अपनों से मिलने की चाहत में हम चले जा रहे,
भूखे-प्यासे हैं हम लेकिन फिर भी जिए जा रहे।

शायद फिर से दिन ‘फिर’ जाएं, फिर खुशियाँ लौटेंगी,
सोने से दिन होंगे सबके, रात चाँदनी होंगी॥