कुल पृष्ठ दर्शन : 195

You are currently viewing हिय की हर पीर हरूँ मैं

हिय की हर पीर हरूँ मैं

सुदामा दुबे 
सीहोर(मध्यप्रदेश)

*******************************************

नित नूतन नव शब्दों का श्रृंगार करूँ मैं,
स्वर के सुरीले रागों का आधार धरूँ मैं।
विधि की बनी हुई सृष्टि की छवियों में,
भाँति-भाँति के सुंदर से नित रंग भरूँ मैं॥

रंक भूप में भेद नहीं कोई करता हूँ,
समदर्शी-सा एक नजर से देखे रहूँ मैं।
दीन-हीन की सदियों से मैं आवाज रहा,
लिख कर उनके हिय की हर पीर हरूँ मैं॥

धरती अम्बर और वन उपवन के वीराने,
मेरे किस्से हिमगिरि और तपती मरू में।
लय मेरी चंचल चपला है सरिता जैसी,
सोम सुधा-सी शीतल सरस फुँहार झरूँ मैं॥

मैं कवि हूँ अपनी ही मर्जी का स्वामी,
नहीं डराए से किसी के कभी डरुँ मैं।
खड़ा अटल-सा मैं तो अपने ही पथ पर,
झंझावत से नहीं टराए कभी टरूँ मैं॥

परिचय: सुदामा दुबे की की जन्मतिथि ११ फरवरी १९७५ हैL आपकी शिक्षा एम.ए.(राजनीति शास्त्र)है L सहायक अध्यापक के रूप में आप कार्यरत हैं L श्री दुबे का निवास सीहोर(मध्यप्रदेश) जिले के बाबरी (तहसील रेहटी)में है। आप बतौर कवि काव्य पाठ भी करते हैं। लेखन में कविता,गीत,मुक्तक और छंद आदि रचते हैंL