कुल पृष्ठ दर्शन : 252

You are currently viewing अनमोल है जीवन

अनमोल है जीवन

सुजीत जायसवाल ‘जीत’
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
*******************************************

श्री सहस्त्रबाहु का वंशज मैं राष्ट्र के प्रति मेरी प्रीत,
चाह दिलों को जीतने की,सब कहते मुझे ‘सुजीत’
नित नूतन काव्य प्रवाह करूँ यही दें मुझको आशीष,
अनमोल-सा है जीवन मेरा कहीं व्यर्थ न जाए बीत।

गृह शोभा मार्बल से नहीं,न ही शोभित लग्जरी कार,
मात-पिता ही कुटुम्ब के,हैं धन-सम्पदा अपार
जिनसे मानुष तन मिला,वो हैं मेरे सीता-राम,
मात-पिता आशीष मिले,तभी सपना होगा साकार।

ससुराल प्रेम में भूल ना जाना,पिता के प्रति सम्मान,
साली,सरहज के रुपजाल में,उलझो नहीं श्रीमान
उल्टी गंगा ही बह रही,अब उन पति-पत्नी के बीच
पतिदेव पत्नी चरणनन छुएं,बेमन ही बोलें मेरी जान।

मंडप के वो फेरों के सुवचन कर नष्ट भ्रष्ट बिसराय,
रच प्रेम पड़ोसन से अपने बस कामुकता ही दर्शाय
अब के ऐसे छात्रगण ज्यों गरजें नित भादों मेघ,
इम्तहान में करें नक़ल सेंध न गुरु सम्मुख वो लजाय।

छोकरियां भी कम नहीं,जो दिखलाएं अब निज अंग,
पहन फटी टी-शर्ट-जींस नित करतीं वो ध्यान को भंग
कलरव करते चंचल लड़के जिनकी लीला नहीं सही,
मस्त हैं फेसबुक-वाट्सअप पर राष्ट्र समाज प्रति बेढंग।

जर्ज़र स्थित से ग्रसित अब व्याकुल सुजीत करे पुकार,
हे बजरंग बली महराज अब तो लीजिए नव अवतार।
इशू,अल्ला,गुरुनानक के दया,कृपा से होगा बदलाव,
निर्भया कांड मन व्यथित करे,अब न हो कोई व्यभिचार॥