सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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न कोई शिकवा किया करेंगे न रंज दिल का कहा करेंगे।
तुम्हारे ग़म के ह़सीं ‘चमन में उदास तन्हा जला करेंगे।
तुम्हीं को हँस कर पढ़ा करेंगे तुम्हीं को पढ़ कर हँसा करेंगे।
तुम्हीं किताबे वफ़ा हो दिलबर तुम्हीं को हर पल तका करेंगे।
सितम की ह़द से गुज़रने वाले तुझे नज़र से गिराएँगे जब,
न ‘ज़िक्र तेरा किया करेंगे,न नाम तेरा लिया करेंगे।
यक़ीन आए न आए तुमको मगर ये सच है ऐ जानेजानाँ,
जो ज़िन्दगी भी बची है उसको तुम्हारे ग़म में फ़ना करेंगे।
ख़ुशी की क्या ‘है ख़ुशी की छोड़ो जो रूठे तुम तो यक़ीन मानो,
तुम्हारा ‘ग़म भी मता-ए-जानाँ क़रीबे दिल हम रखा ‘करेंगे।
यक़ीं है हमको वफ़ा ‘पे इनकी ह़ुज़ूरेवाला चमन में ‘इक दिन,
गुलाब हम ‘से बचा करेंगे ‘ये ख़ार दामन छुआ ‘करेंगे।
मिली जो फ़ुर्सत ग़म-ए-जहाँ ‘से क़रीब उनके फ़राज़ जा कर,
कुछ ‘अपने दिल ‘की कहा करेंगे कुछ उनके दिल की सुना करेंगे॥