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आँसू नहीं आने देते

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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सोचते हैं मन में माता-पिता, वृक्ष लगाऊँगी तो फल भी खाऊँगी,
बच्चे को बड़ा करूँगी, वृद्धावस्था में तब सेवा की आस लगाऊँगी।

वृद्धावस्था में माता-पिता, बच्चों से सेवा को इच्छुक रहते हैं,
क्योंकि, बच्चों के पालन-पोषण-पढ़ाई में भिक्षुक बने रहते हैं।

भूल जाते हैं सुख माता-पिता, और बच्चों की खुशियाँ बटोरते हैं,
दिन-रात कड़ी मेहनत करके पिता, अन्न-धन उपार्जन करते हैं।

सबकी चिंता करते हैं पिता, बेटा चाहे बेटी, एक चाहे दो-चार हों,
कमी रहे नहीं खुशियों में कमाते हैं पिता, चाहे जितना बीमार हों।

बच्चों की हर मुस्कान के लिए माँ अपनी सुध भी नहीं रखती है,
दिन-रात माँ अपने बच्चों के लिए, जी-जान से मेहनत करती है।

कितनी बावरी होती है माँ, रातभर गीले में सोकर सूखे में सुलाती है,
जिस माँ का बच्चा काला है, वह भी काजल का टीका लगाती है।

कैसे वक्त काट लेते हैं माता-पिता, चैन की नींद भी नहीं सोते हैं,
बच्चों के हँसने पर हँसते, बच्चों के शरारती रोने पर भी, वे रोते हैं।

परम सत्य है सब नहीं, पर जरूर कुछ सेवा भाव से दूर हैं बालक,
भूल जाते हैं अपने कर्तव्य को भूल जाते, कौन है उनके पालक।

जिस माता-पिता ने दुनिया दिखाई, आज वही माता-पिता हैं नेत्र बिन,
क्या मिला बच्चे को बड़ा करके, जब वृद्धावस्था में है दु:ख का दिन।

ऐसे भी संस्कारी बच्चे हैं, अपने माता-पिता को देवतुल्य मानते हैं,
शक्ति से बढ़ के सेवा करते, आँखों में कभी आँसू नहीं आने देते हैं॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |

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