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उलझनें सुलझा दे

अभिजीत आनंद ‘काविश’
बक्सर(बिहार)
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ए साकी इस मर्ज की कोई दवा दिला दे,
मिट जाएं सारे दर्द आज ऐसा कोई पैमाना पिला दे।

ग़म भुलाने खातिर पीने तो शहर आता है यहां,
पीकर दर्द उभर आए आज ऐसा कोई मयखाना बता दे…।

लेखनी की स्याही सूखी पड़ी आज मेरी,
दवात की जगह आज फकत जाम पिला दे।

तेरे जुल्फों के साये हर किसी को मयस्सर नहीं,
इनके साये में आज मुझे सुला दे।

रिश्तों की गुत्थियां सुलझाते खुद में उलझ गया हूँ,
तू आज मेरी सारी उलझनें सुलझा दे।

सुना है आँसूओं को रिहाई नहीं मिलती यहां,
कुरेद कर कोई ज़ख्म आज मुझे जी भर के रुला दे..।

तेरी पनाह से मैंने किसी को बैरंग जाते देखा नहीं,
अपनी पनाह में मुझे भी थोड़ी जगह दिला दे॥
ए साकी इस मर्ज की कोई दवा दिला दे…

परिचय-अभिजीत आनंद का साहित्यिक नाम अभिजीत आनंद ‘काविश’ है़। १ दिसंबर १९९३ को बक्सर(बिहार)में जन्मे और यहीं स्थाई बसेरा है़। आपको हिंदी भाषा का ज्ञान है़। इनकी पूर्ण शिक्षा स्नातक (सूचना तकनीकी) एवं कार्यक्षेत्र में फिलहाल विद्यार्थी है़। लेखन विधा-कविता व ग़ज़ल है़।