डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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धन्य-धन्य माँ भारती,
कैसे करूँ बखान।
जगती को बाँटी सदा,
उपकारों की खान॥
जन-जन जीवन एक है,
ऐक लहू का रंग।
धरती ही परिवार है,
सदा बताती गंग॥
माँ सबका पोषण करे,
सदा दिखाती राह।
खोजे से मिलती नहीं,
उपकारों की थाह॥
गंधसार,रज भूमि की,
मलयज की है वात।
निर्जर भी आकर यहाँ,
धारें मनु की गात॥
सुधामई माँ भारती,
जीवन का है सार।
उपकारों का क्या कहूँ,
छलके पारावार॥
ऊषा लेकर आ गई,
खग के मोहक गीत।
सावन भी बाँटे यहाँ,
मधुरिम नव संगीत॥
राम रमे मन में सदा,
मोहन के हैं गीत।
भोर सुहानी छेड़ती,
मधुर अमर संगीत॥
भाँति-भाँति की ऋतु यहाँ,
भाँति-भाँति के फूल।
अगणित तरु,फल के लिये,
माटी है अनुकूल॥
सावन में तन पर सजे,
हरियाला परिधान।
भारत माँ का कर रही,
जगती भी गुणगान॥
रत्नाकर पग को छुये,
हिमगिरि साजे भाल।
पावन माता भारती,
जगती की प्रतिपाल॥
परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।