संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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कवि जन की पीड़ा गाता है,वह बात करे हर जन की,
हर हृदय की थाह रखता,पर बात कहे अपने मन की।
जन-जन के घायल उद्गार,जुबाँ पर मजबूरियों के ताले,
सहना ही आदत बन गई,दृष्टि में पड़ चुके हैं जाले
सोच गुम हुई है आज़ादी की,सह-सह कर परेशानी,
पेट कमर से लगा बुढापे में,तिल-तिल जली जवानी।
कवि बनता है आवाज़ उनकी,जाने वह हर क्षण की,
कवि जन की पीड़ा गाता है,सुगंध फैलाए चंदन की…॥
कभी गाए गीत क्रांति के,कभी कविता शांति की,
दु:ख-दर्द का समाधान कहे,कालिमा मिटा भ्रांति की
जख्मों पर शब्दों के मलहम,लबों पे लाए मुस्कान,
गिरे हुओं को खड़ा कर दे,मुर्दों में भर सकता प्राण।
वो ऊंचाई हिम शिखरों की,वो ज्वाला है अगन की,
कवि जन की पीड़ा गाता है,वो छाया घर-आँगन की…॥
लोगों की पीड़ा उठाए,दर्द-ए-दिल जग को बताए,
दीन-दुखी उसको देखते,देखें मजबूर और सताए
शब्दों में बुनता वह ताकत,शब्दों का ही है मसीहा,
कर उजाला अंधेरे दिलों में,तिमिर हरे बन के दीया।
सुख प्रेम जहां हिलोरे लें,सैर करा दे उस उपवन की,
कवि जन की पीडा गाता है,वह बात करे हर जन की…॥
परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।