डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
******************************
जलधर को घिरते देखा तो,
फिर चला ना दिल पर जोर
प्यार की गगरी छलक उठी,
वो हमें दिखने लगे चहुंओर।
कैसे कहुँ दिल की बतिया,
अब जिया मेरा भरमाए
जी चाहे अब दूर रहूँ ना,
आकर गले मेरे लग जाए।
बरखा आई लेकर बहार,
रिमझिम-रिमझिम पड़े फुहार
भीगा-भीगा तन-मन मेरा,
भीगे आँचल के तार-तार।
पवन बैरी भी यूँ इतराए,
देख कर बेबस मुँह चिढ़ाए
आँचल को ऐसे वो छेड़े,
जैसे कोई दामन छू जाए।
सूना-सूना मन का आँगन,
अब खिले फूल-ना कलियाँ
राह तकत मेरे नैन पथराए,
सूनी रह गई मेरी गलियाँ।
उधर काले जलधर बरसेंगे,
इधर बरसेंगे मेरे दो नैन
धुल जाएंगे श्रंगार सारे,
और मेरे कजरारे दो नैन।
कोई तो दे संदेश पिया को,
अब जिया मेरा घबराए।
जलधर को घिरते देखा,
फिर चैन कहां से आए॥