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जिंदगी चार दिन का मेला

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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यह जिंदगी चार दिन का मेला है,
आए थे अकेले जाना भी अकेला है
आने-जाने वाले रस्ते में,
देखा मैंने बड़ा झमेला है।

इस जिंदगी में देखे मैंने कई खेला है,
कहीं हाथी कहीं घोड़ा तो कहीं
हाथों से ही जीवन धकेला है,
यह जिंदगी चार दिन का मेला है।

इस मेले में सत्य को टटोला है,
स्वार्थी हो मेरा मन भी डोला है
देखा अपने-पराए के चक्कर में,
जीवन का रहस्य हमने भूला है।

बेटा-बेटी करता रहा,
धन के संग पड़ा रहा
अंत में न कोई मेरा है,
आया अकेला,जाना भी अकेला है।

आने-जाने वाले रास्ते में,
कर्म का ही बस खेला है।
करें सतकर्म यदि,
ईश्वर भी संग,हमारा है।

कहता ‘राजू’… कहता राजू,
यहाँ कोई नहीं है अपना।
सब माया-मोह का रैला है,
यह जिन्दगी चार दिन का मेला है॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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