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…तो ज्ञान दीपक न जलता

आदर्श पाण्डेय
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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मेरा विद्यार्थी जीवन स्पर्धा विशेष …….

मैं जब पहली कक्षा में था तो दोस्तों को बहुत गालियाँ देता था,सिर्फ इसलिए कि वो मुझे परीक्षा में नकल नहीं कराते थे। उस समय हमारे विद्यालय में ‘चूरन’ मिलता था। जब परीक्षा का समय आता था तो मैं उन्हीं लड़कों को चूरन खिलाता था जो पढ़ने में तेज थे,ताकि वो परीक्षा में मुझे नकल कराएं। अपने बचपन में बहुत विद्यालय छोड़े, बदले,क्योंकि पढ़ने में कमजोर था,लेकिन अनुत्तीर्ण नहीं था।
जब चौथी या पांचवी कक्षा में था,तब विद्यालय बहुत कम जाया करता था। मुझे वहां जाना पसंद नहीं था। अगर घर-परिवार के लोग मुझे जबरजस्ती भेजते भी थे,तो विद्यालय के पीछे जाकर छुप जाता था,या किसी पेड़ के नीचे बैठ जाता था। कुछ दिन तक तो ऐसा चलता रहा,पर एक बार विद्यालय के प्राचार्य घर आए और माँ से बोले कि,आपका बेटा विद्यालय नहीं आता है। ऐसा क्यों ?
माँ बोली-यहाँ से तो रोज जाता है।
मैं उस समय घर पर था नहीं,पर जब घर आया तो माँ ने खूब पीटा। फिर उसके बाद से मैं विद्यालय जाने लगा।
फिर मेरे दिमाग एक नया विचार आया-जो शिक्षक ज्यादा मारते थे,हम उनसे हम ट्यूशन पढ़ने लगे,तब हमें कम मार पड़ती थी। समय बीतता गया। मैं छठवीं कक्षा में आया तो प्राचार्य से ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया। फिर उसके बाद तो विद्यालय में मेरी अलग ही फिजा बन गई। फिर मैं किसी से नहीं डरता था,ममौजी हो गया। जब मैं कक्षा ८ में था, तब कृषि विज्ञान के शिक्षक ने सब बच्चों को बोल दिया कि,जो परीक्षा में प्रश्न आएंगे,वो आप सबको मैं बताता हूँ। सर ने 5 प्रश्न बताए,तो सब बच्चे खुश हो गए,लेकिन मेरे लिए मुश्किल थी,क्योंकि प्रश्न के उत्तर बड़े थे। जब परीक्षा के १० दिन बचे तो मुझे चिंता होने लगी,क्योंकि उत्तर याद नहीं हो रहे थे।
जब परीक्षा चालू हुई तो पहला प्रश्न हिंदी का था। फिर,परीक्षा में जो कॉपी मिलती है लिखने के लिए, उसको मैंने चुरा लिया और लेकर घर आया। घर पर कृषि विज्ञान के सारे प्रश्न के उत्तर उसमें लिख लिए। उसका पर्चा अगले दिन के बाद होने वाला था। अपनी लिखी हुई कॉपी लेकर परीक्षा देने गया तो थोड़ा डर लग रहा था। सब बच्चे परीक्षा देने के लिए बैठे,मैं भी। परीक्षा की कॉपी बँटने लगी। २ घंटे की परीक्षा थी-जब एक घंटा बीत गया तो मैंने परीक्षा में मिली हुई कॉपी को पैन्ट में चुरा लिया, और लिखी हुई को निकाल लिया। एक लड़का ये सब देख रहा था,वो बोला-क्या कर रहे हो।
मैं डर गया,बोला कि-यार मेरे पास २ कॉपी आ गई थी। और ऐसा बोलकर बच गया।
परीक्षा जब ख़त्म हुई और परिणाम आया तो मैंने कृषि विज्ञान में १० में से १० अंक पाए थे। सब दोस्त आश्चर्यचकित हो गए। सबसे बड़ी बात ये कि शिक्षक भी आश्चर्यचकित कि,इसको इतने अंक कहाँ से मिले ?
मेरी कक्षा के लड़के बोले कि,सर आप उसी प्रश्न का उत्तर अपने सामने लिखने के लिए बोलो पाण्डेय को,तब मालूम होगा।
अरे,तो मैं भी कच्चा खिलाड़ी नहीं था,आखिर प्राचार्य से ट्यूशन कर रहा था,तो फिर मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ।
जब मैं आठवीं उत्तीर्ण करके निकला तो मेरे लिए प्रयागराज में एक अच्छे महाविद्यालय में प्रवेश की बात चल रही थी। ये महाविद्यालय मुझे बहुत पसंद आया था,लेकिन दाखिला लेना मुश्किल था। हम पढ़ने में ज्यादा तेज थे नहीं,पर पढ़ना भी मुझे सिर्फ उसी में था। इलाहाबाद से हम अपने गाँव आए और चाचा को बोला कि मुझे उसी महाविद्यालय में प्रवेश लेना है। आपका कोई परिचित हो तो प्रवेश दिला दो। उस समय चाचा जी के दोस्त एक पूर्व मंत्री थे। फिर हम और चाचा जी उनसे से मिलने गए और मेरा प्रवेश हो गया। उस कॉलेज में प्रवेश होने के बाद मैंने कभी नक़ल नहीं की। उस समय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ की सरकार थी,तो सभी महाविद्यालयों में सीसीटीवी कैमरा लगा था। नकल होना बंद हो गया। जो बच्चे कभी पढ़ते नहीं थे,वो भी पढ़ने लगे। उस समय बहुत बच्चे असफल हुए। मैं भी १ विषय में असफल हुआ,लेकिन उसके बाद से मैंने अपने जीवन में शिक्षा को उतारना शुरू किया। विद्यार्थी जीवन में अनुत्तीर्ण था,लेकिन अपने जीवन में असफल नहीं था। मन में कुछ करने की ललक थी,लेकिन कर नहीं पाता था। फिर मैं हिंदी के बड़े लेखकों की किताबों को पढ़ने लगा,तो मेरे अंदर शिक्षा का विस्तार हुआ। मुख्यमंत्री का आभार प्रकट करता हूँ कि,अगर उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा न दिया होता और नकल को ख़त्म न किया होता तो शायद मेरे अंदर ज्ञान का दीपक न जलता।
नसीहत-आपकी आज की सरलता कल पर भारी पड़ सकती है।

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