प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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नाव पानी में है तो बहुत बढ़िया है,
नाव में पानी है नाव डूब जाती है।
जीव इस जग में है तो बहुत बढ़िया है,
जीव में जग है, प्रभु भक्ति छूट जाती है॥
तुम हो संसार में संग परिवार के,
नाम प्रभु जी का भूल अन्न-जल पी रहे।
शिव हैं शिवधाम में संग परिवार के,
राम पल भर न भूल नाम-जल पी रहे।
प्रभु चरन मन में हों तो बहुत बढ़िया है,
हाथ में कर्म हैं दुविधा छूट जाती है…॥
प्रभु ने रक्खा हमें जब इस संसार में,
इसमें रह के न रमना विकट है बहुत।
कमल-पुष्प से रहें जब इस संसार में,
दूर जग-जल से रहना विकट है बहुत।
प्रभु शरन मन में हो तो बहुत बढ़िया है,
ध्यान में ईश हैं माया छूट जाती है…॥
प्रभु के दरशन पाते हैं ये भक्त कह रहे,
सूर, तुलसी, मीरा ने नित दरशन किए।
दास प्रभु जी के हम हैं ये भक्त कह रहे,
जिए एकांत प्रभु संग नित दरशन किए।
प्रभु लगन मन में है तो बहुत बढ़िया है,
मौन में प्रीत है वाणी छूट जाती है…॥
प्रभु को पाने की हाय-हाय मन में मचे,
झूठे व्यौहार, त्यौहार मन न लगे।
सब खो जाने की हाय-हाय मन में मचे,
निद्रा आहार, संसार मन न लगे।
प्रभु भजन मन में हो तो बहुत बढ़िया है,
चित्त में भक्ति है आसक्ति छूट जाती है॥
भक्ति-मारग की निंदा होती है जहां,
कोई स्थान, व्यक्ति है भक्त दूर हों।
ग्रंथों-संतों की निंदा होती है जहां,
कोई भी तर्क-शक्ति है भक्त दूर हों।
प्रभु जपन मन में है तो बहुत बढ़िया है,
मुख में प्रभुनाम है निंदा छूट जाती है…॥
नाव पानी में है तो बहुत बढ़िया है,
नाव में पानी है, नाव डूब जाती है।
जीव इस जग में है तो बहुत बढ़िया है,
जीव में जग है, प्रभु भक्ति छूट जाती है…॥
