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वैश्विक लिपि बनने की सामर्थ्य है नागरी लिपि में-डॉ. पाल

दिल्ली।

नागरी लिपि अपनी सरलता, सुगमता और सर्वाधिक वैज्ञानिक प्रकृति तथा सूचना प्रौद्योगिकी के अनुकूल होने के कारण वैश्विक लिपि बनने की सामर्थ्य रखती है। आज से ५० वर्ष पूर्व स्थापित एवं देश-विदेश में नागरी लिपि का प्रचार प्रसार करने वाली प्रतिनिधि संस्था नागरी लिपि परिषद ने नागरी लिपि की सामर्थ्य को वैश्विक स्तर पर पहुंचा दिया है।
परिषद की मध्य प्रदेश इकाई की नागरी लिपि की अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने मुख्य वक्ता के रूप में यह विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता मध्य प्रदेश शासन के पूर्व संयुक्त शिक्षा निदेशक डॉ. ब्रजकिशोर शर्मा ने की। नार्वे के नागरी लिपि और हिंदी सेवी साहित्यकार सुरेश चन्द्र शुक्ल मुख्य अतिथि रहे। नागरी लिपि अध्येता डॉ. रश्मि चौबे की सरस्वती और नागरी वंदना से शुरू हुई संगोष्ठी में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की महासचिव व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. शहनाज शेख ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। पुणे की डॉ. मुमताज पठान ने प्रस्तावना रखी। संगोष्ठी में मारीशस के नागरी हिंदी सेवी डॉ. सोमदत्त काशीनाथ, डॉ. शारदा प्रसाद और कतर की हिंदी साहित्यकार डॉ. संगीता चौबे ने नागरी लिपि की वैश्विकता पर अपनी बात प्रस्तुत की।