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सफ़र ही सफ़र

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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जिंदगी एक खुली किताब,
कि जिसका हो
हर पृष्ठ शोहरत की,
उमीदों में सजी हुई।
चाहत लम्बी हो पर आस की,
हो प्रबल दिव्यता
कि रश्मि-ज्योत यशकृतेज्ञ,
की महत्वपूर्ण आस्था।
परिवेश से सम्पूर्ण,
प्रतिष्ठा का अनमोल रत्न
जड़ित संस्कृति, सभ्यता व,
संस्कार से सुख समृद्ध वैभव की
सुदृढ़ता से संकलित,
भावों में ऐश्वर्य की
लताओं से जोविकोपार्जन की,
संचित आर्थिक समता में।

दीर्घायु जीवन की असीम,
आशा के साथ हमसफ़र बन
चल चलते रहना ही,
खुली किताब का सजीव
दर्शन होता है वास्तव में,
प्रशांत जीवन दर्शनम्
से मोक्ष-मृत्यु के सफर में।
अध्यात्म दर्शन तो परमात्म ही,
जो अंत: चरित्र निर्माण से
बाह्य स्वत: दिव्यता से,
उज्वल कृतज्ञता से
उदित हो जाने को तत्पर।
जिंदगी तो खुली किताब,
ही हो तो ‘सफ़र ही सफ़र॥’

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।

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