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हमारा नववर्ष नव संवत्सर

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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बीता होली का ख़ुमार अरु बीत गयी रंगीं रातें,
बीती सारी हँसी-ठिठौली बीती प्यार भरी बातें।

बीता फागुन मास चैत्र की प्रतिपदा अब आयी है,
आया ‘नूतन वर्ष’ हमारा खुशियाँ घर घर छायी है।

राग द्वेश को भूल सभी अपना ‘नववर्ष’ मनायेंगे,
घर-घर वंदनवार बंधेगी,मंगल गाये जायेंगे।

संवत दो हजार अठहत्तर भूतकाल बन जाएगा,
उनियासी की अगवानी करने जन-जन पलक बिछाएगा।

नववर्ष हमारे जीवन में अब शुभ संदेशा लायेगा,
हर कष्ट से मुक्ति देकर के जीवन सरस बनायेगा।

संग-संग ‘नव संवत्सर’ नवरात्रि का अभिनंदन है,
माँ दुर्गा नववर्ष आपका सदा सदा ही वंदन है।

अपना ये ‘नववर्ष’ हमें सुख समृद्धि देने वाला हो,
हर दिल में हो भाईचारा,मानवता का रखवाला हो।

हे नये वर्ष आशीष करो हम राष्ट्र देव को नमन करें,
अपना ये तन-मन धन जीवन भारत माँ को अर्पण कर दें।

न कहीं देश में रक्त बहे,जियें सब सुख की छाया में,
न प्रकृति करें ताण्डव कोई न फंसें मोह अरु माया में।

जीते हैं भय की छाया में उससे छुटकारा मिल जाये,
माँ दुर्गा से विनती है ये आकर के दूर हटा जाये।

ये विश्व रहे खुशहाल सदा ईश्वर से इतनी विनती है,
सबके खातिर ही शुभ रहना ये समय की उल्टी गिनती है॥

परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

 

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