बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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खुश बाहर से हो,
अंदर से क्यों खाली ?
क्या तुमने भी भाग-भाग कर,
जीवन की दौड़ लगा ली…।
ये अंतस की वेदना,
और दु:ख सारे सहना
क्या विजय खुद पर पा ली!
यदि नहीं तो
चहुँ ओर देखो,
सूखे वृक्ष पर छाई पुनः हरियाली…।
स्थाई क्या रहा है जीवन में,
मुरझाए फूल खिले उपवन में
दु:ख आया फिर सुख आएगा,
जीवन की रीत निराली
चंद्र आएगा शीतलता लेकर,
छंट जाएगी रात अमावस वाली…।
दु:ख आता है, पाठ पढ़ाता है,
जिसने सीख जीवन की पा ली।
हर क्षण में फिर आनंद मिलेगा,
मनेगी हर दिन दीवाली…॥
