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अच्छे की अच्छाई नहीं

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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अच्छे की अच्छाई नहीं,
क्यों बुरे की बुराई करें
ऊपर वाला मौन यहां,
क्यों हम ही चतुराई करें।

है स्याना,चतुर बहुत वो,
हर काज हाथ उसी का
मुआ जग यूँ ही जग में,
क्यों हाय-हाय दुहाई करे।

हाथ डोर उसी के है,
तू उड़ता पंछी उसी से है
खींचने वाला खींच रहा,
तू काहे को रुसवाई करे।

स्थिति में बदले परस्थिति,
उपस्थिति हर वक्त कहां
स्थाई होने की ज़िद में तू,
क्यों जग का जमाई बने।

है ख़ाक का अम्बार बड़ा,
वो खाप लगा श्मशान खड़ा।
कर्म फल की पंचायत में,
वो कर्मों की सुनवाई करे…॥

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