बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
*****************************************
जिनकी रगों में
धड़कती ईमानदारी,
जिनकी संवेदनाओं के बादल
हथेलियों की रेखाओं में बसे हुए।
अपने नवोदित स्वप्न
टूटते देखती हैं,
तो झर जाती है
झरने की तरह।
जिनके होठों पर सुंदर सरगम,
जिनकी भावनाओं में
अनंत रहस्य छिपे हुए।
जिनकी देह में नील के रूप में,
किसी की आशाएं जमी हुई
मीठे पानी के सोते की तरह,
शांत-सी देखती हैं।
उनको देखकर मिट जाता है
मेरी भाषा का ताप,
भूल जाती हूँ छंद, अलंकार
बजाती हैं जब वो बाँसुरी,
उनकी सुखद धुन।
इतिहास के पन्नों पर लिखी जाती है,
तोड़ देती है जंगल का चक्रव्यूह
निःशब्द हो जाती हूँ मैं।
आदिवासी स्त्रियाँ,
जिनके अंतर्मन की आवाज
राग-विराग की है भंडार।
जिनकी खनकती आवाज,
अनादिकाल से गूँज रही है।
मेरी उपमाएं फीकी पड़ गई,
उनके आगे बिना रंग के चित्र की तरह॥