सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आनंदित करने घर-आँगन,
तुम प्रणय-कुंज में जब आईं
ज्योतित करने अपना जीवन,
तुम पायल की रुनझुन लाईं।
अंतर में पुलकित होता मन,
सुर साज मधुर वीणा बोली
तुम थाल सजाए बैठी क्यों ?
मन भावन पल आयी होली।
पल्लवित हो उठा मधु यौवन,
मंजरित हृदय की अमराई
करती कुसुमित निज उपवन को,
तुम इतनी दूर निकल आयीं।
यह प्रणय दिवस तुम दोनों का,
सुरभित रस जीवन का पाओ
सौंदर्य सकल अभिलाष निखिल,
निज साजन के संग तुम पाओ॥