सरगुजा (छग)।
कलम की सुगंध महफ़िल-ए-ग़ज़ल मंच पर आनलाइन मुशायरा आयोजित किया गया। कार्यक्रम संस्थापक संजय कौशिक विज्ञात, पटल संचालक ग़ज़लकार धर्मराज देशराज की उपस्थिति में यह हुआ।
इस कार्यक्रम की शुरुआत अर्चना पाठक ने सरस्वती वंदना से की। अनेक जगह से रचनाकारों ने इसमें प्रतिभागिता की। सभी ने एक दूसरे की रचनाओं को सुना और जी भर के प्रशंसा कर हौंसला अफजाई की। मुशायरे में संजय कौशिक ने सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल पढ़ी-‘दग्ध होती देख धरणी नभ पिघलना चाहिए। बादलों के पार से अम्बर बरसना चाहिए॥’
वरिष्ठ साहित्यकार आशा शैली ने बेटियों के बारे में कुछ अपनी भावनाएँ यूँ प्रकट की-‘लोग मारे हुए बदनसीबी के वो,जिनकी किस्मत में होती नहीं बेटियाँ।’ डॉ. कविता विकास ने भी ग़ज़ल पढ़ी तो,डाॅ. आलोक कुमार यादव,डॉ.अनुराग सिंह नगपुरे,सतेन्द्र मोहन शर्मा,कमल कटारिया एवं विनोद कुमार ‘हँसोड़ा’ ने भी अपनी रचना प्रस्तुत की।
अध्यक्षता कर रहे गज़लकार धर्मराज देशराज की ग़ज़ल की बानगी देखिए-‘नग़मे ग़मो के जब कभी गाती हैं हिचकियाँ। वादा वफ़ा का याद दिलाती हैं हिचकियाँ।’ अनिता मंदिलवार ने अपनी ग़ज़ल-‘बिन रूके ये कदम हम बढ़ाते रहे। खुश हुए जो यहाँ गीत गाते रहे।’ से खुश रहने का संदेश दिया।
मुशायरे में वरिष्ठ गज़लकार स्वरूप किशन,नज़र द्विवेदी,हीरालाल यादव,मीना भट्ट आदि भी उपस्थित रहे। सभी ने मुशायरे की भूरि-भूरि प्रशंसा की। बेहतरीन संचालन अनिता मंदिलवार ‘सपना’ ने किया।