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‘बुलाsssss’

फिजी यात्रा:विश्व हिंदी सम्मेलन…

भाग-२..

फिजी की लगभग २० घंटे की यात्रा में मलेशिया के कुआलालमपुर में एक विराम हुआ। उस २ घंटे के विराम ने आधी यात्रा की थकान उतार दी। फिर हम लोग दूसरे भाग की यात्रा के पश्चात पहुंचे सीधे फिजी।
विमानतल पर परंपरागत ढंग से स्वागत ने अभिभूत किया। सीधे पहुंचे हमारे आवास और कार्यक्रम स्थल होटल शेरेटॉन पर, जहां सबसे पहला स्वागत मधुर फिजियन गायक ने किया। मुझे लगा कि वह संभवतः फिजी की भाषा में ही गीत गा रहा होगा, किंतु ध्यान से सुनने पर उसे एक बहुत प्यारा सा हिंदी फिल्मी गीत गाते पाया। भारत भूमि को विस्मृत तो कर ही रहा था, तुरंत उस भाई से पूछा-हिंदी का कोई गीत बताऊं तो गा सकोगे ? उसने पूरी प्रसन्नता से कहा- क्यों नहीं, आप बताइए कौन-सा गाना है ?
मैंने इच्छा व्यक्त की मेरे अत्यंत आत्मीय गीतकार मनोज मुंतशिर का वह प्रसिद्ध गीत जिसके साथ भारत की नालायक बॉलीवुड पुरस्कार इंडस्ट्री अन्याय कर चुकी थी और वह गीत था ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’।
उसने तुरंत गाना प्रारंभ किया। पूरा गीत उसकी उच्चारण क्षमता के अनुसार उसने बहुत सुंदर गाया और मैं अभिभूत था अपने देश की मिट्टी को प्रणाम करते इस गीत को फिजी के गायक के मुख से सुनकर। तभी हम लोगों को कहा गया कि लंबी हवाई यात्रा से आपकी गर्दन, कंधे दर्द कर रहे होंगे इसलिए थोड़ा-सा उन्हें सहज बनाने की व्यवस्था है। फिर वहीं की एक बहन ने बहुत ही स्नेह-दुलार से हम लोगों की गर्दन-कंधे चटकाए सचमुच पूरी थकान दूर हो गई।
तभी होटल के बाहर दृष्टि पड़ी एक परंपरागत जनजातिय वेश में खड़े बंधु पर। वह पेड़ के तने से उसे खोखला कर बनाए गए एक ढोलनुमा भारी वाद्य को लकड़ी के गुटकों से बजा रहा था। आश्चर्य की बात यह कि बिना किसी चर्म लगे तल के बाद भी केवल तने से ढोल जैसी ध्वनियाँ निकल रही थी। फिजी का सर्वाधिक प्रचलित शब्द ‘बुला’ यानी ‘नमस्ते’ या ‘अभिवादन’ पहली बार इसी वादन के पश्चात सुना था। मेरे भी हृदय से प्रसन्नतादायक ध्वनि निकल पड़ी- ‘बुलाsssss’।

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