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urmila-kumari

आया सावन झूमकर

उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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झूम-झूमकर काली बदरिया आज धरती पर,
काले-काले घनघोर बदरिया सावन वर्षा धरती पर।

हरी-भरी हुई अपनी वादियाँ, खेतों में फसलें लहराई,
बरसात आगमन से देखो धरती ने ली फिर अंगड़ाई।

सावन का महीना लगता सुहावना बरस रहा झूमकर,
पावन है भोलेनाथ का महीना लाया वर्षा यह झूमकर।

उमड़-घुमड़ कर छाई घटा है प्रकृति जल को है खींचे,
आओ बादल दादा आओ हमारे आँगन को जल से सीचें।

धरती की सुंदरता तुमसे, तुम से ही धरा श्रृंगार सजता है,
रंग-बिरंगे फूलों से लदा सारा गुलशन तुमसे महका है।

भौंरों की गुंजन दिनभर होती रात झींगुर करता शोर,
तितलियों ने प्रकृति से रंग चुराकर मस्त घूमे चहुँओर।

स्वीट कॉर्न की बाली निकली मक्खियों का हुआ आगमन,
भिन-भिन करती सब ही जगह पर बरसात की पहचान।

हरियाली ही हरियाली छाई बरसा सावन झूमकर,
‘उर’ से मन प्रसन्नचित्त हुआ सावन की झड़ी देखकर॥