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इश्क़ करना खता थी

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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नासमझ बेअदब, बेवफा, आदमी,
खुद को भी अब समझता है खुदा आदमी।

ज़िंदगी बर्बाद कर डाली है उसने प्यार में,
बारहा पैरों से जमीं छीन लेता आदमी।

बेवफाई का तेरी शिकवा भला कैसे करूँ,
पाक मोहब्बत की भी तौहीन करता आदमी।

इश्क़ करना क्या खता थी कोई बतलाए मुझे,
वादा करके क्यूँ हो गया है लापता आदमी।

‘शाहीन’ जलती रात भर बुझने के लिए ही शमा,
रोज उदासी को भी वीराने में लाता आदमी॥