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उत्सव… उमंग

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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जीने की उमंग जगाते हैं,
व्यस्तता से खुशी चुराते हैं
उत्सव जब गृह में आते हैं,
सुंदर वर्तमान बनाते हैं।

वह उत्सव ही तो होते हैं,
अपनों की पहचान कराते हैं
परिवार का महत्व बताते हैं,
ज़िंदगी को संपूर्ण बनाते हैं।

यात्राएं कराते हैं, मस्ती में रमाते हैं,
सुस्त-सी ज़िंदगी, ज़िंदादिल बनाते हैं
भूले पकवानों का स्वाद दिलाते हैं,
संस्कार, नई पीढ़ी को दे जाते हैं।

वृद्ध काया में फुर्ती भरते हैं,
भूले रिवाजों को खंगालते हैं
सूनी नजरों में दीप जलाते हैं,
बुजुर्गों का मान बढ़ाते हैं।

खुशियों के सुमन खिलाते हैं,
हृदयों की उमर बढ़ाते हैं
कितनों का चूल्हा जलाते हैं,
उत्सव जब घर में मनाते हैं।

इंसा का वजूद बताते हैं,
भावी आशाएं जगाते हैं।
उत्सव जब पूर्ण हो जाते हैं,
यादें खट्टी-मीठी दे जाते हैं॥