प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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विरहा-वेदना कातर मन से शिव को जो भी पुकारे।
ऐसे भक्त-सेवक मेरे शिव को लगते हैं अति प्यारे॥
आँखों में आँसू भर कर जो शिव को नहलाते हैं,
सावन की ठंडी बूँदों-सा अनुभव शिव को कराते हैं।
उन बूँद में शिव जी सुंदर मधुरिम सुख नित पाते हैं,
धन्य हैं वे सेवक शिव के जो भक्ति-भाव समाते हैं॥
आँख में आँसू पर मन धीरज शिव का नाम उचारे,
ऐसे भक्त सेवक मेरे शिव को….॥
अपने मन की व्याकुलता सब शिव चरणों में अर्पण कर,
कष्ट सहे विधना के हँस आभार रहे नित मुख पे निरंतर।
मौन की भाषा के ज्ञाता कभी देते नहीं प्रति उत्तर,
बस एकांत को मीत बना जपते शिव जपते हर हर॥
बीते को बिसरा कर जो आगे की गति सँवारे,
ऐसे भक्त सेवक मेरे शिव को…॥
नाम का सुख मुक्ति से बड़ा ना मुक्ति युक्ति करते,
स्वयं समाहित शिव में हों, पर भक्ति की रक्षा करते।
शिव के दास ही बन के खुश हैं शिव की चाकरी करते,
खुद का भी जिन्हें मोह नहीं, वे किसका मोह हैं करते॥
मन में जाने सिद्धों की सिद्धि है शिव नाम सहारे,
ऐसे भक्त सेवक मेरे शिव को…॥
विरहा-वेदना कातर मन से जो भी शिव को पुकारे,
ऐसे भक्त-सेवक मेरे शिव को लगते हैं अति प्यारे…॥