सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…
ईश्वर प्रदत्त कोमल काया थी,
स्वर्ण रूपी अनमोल माया थी
सहारा कांधे का पाकर स्त्रियाँ,
छत्रछाया में पुरुष की महफूज़ थी।
ममता की मूरत कहलाई,
सारे जगत में सराही गई,
मातृत्व का वरदान पाकर,
पुरुष की सहयोगी कहलाई।
पर हाय नारी, क्यों तू कठोर, कर्कश हुई ?
स्त्री-अपराध में, क्यों तू ही लिप्त पाई गई ?
कभी सास, ननद बन, बहू जलाई,
कभी गृह-क्लेश में दोषी पाई गई ?
बरसों-बरस पुरुष पर आश्रित हुई,
पर कुछ धन कमाकर अभिमानी हुई
जिस कांधे का सहारा लेकर आगे बढ़ी,
क्यों… उसे ही तू धिक्कारती हुई ?
इतिहास में देखा, लिखी हुई,
नारी ही नारी की दुश्मन हुई
कथा महाभारत के युद्ध की,
नारी द्वारा ही विस्तारित हुई।
ओढ़ ले स्त्रियोचित सुंदर अलंकृति,
बना दे वहीं सुघड़ संस्कृति।
खड़ी हो जा साथ नारी के,
बन जा ईश्वर की बेदाग अनुकृति॥