सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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छोड़कर बंधन में चला,
चला अकेला चला
फिर ये जाना वो एक,
जो छूट गया मेरा अपना पीछे।
बंधन नहीं था मंजूर मुझे,
दूर जो आकाश दिखा
पास जा के जाना,
यह तो भ्रमित करता रहा मुझे।
छूट गए सब अपने मेरे,
बस! एक बार फिर लौट आएं।
वो घर-आँगना चहचहाहट,
ले आओ कोई वो मेरे पाँव जमीं पे॥