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कन्या भ्रूण का करुण क्रंदन

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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हे जननी, तू क्यों कातर हो,
सिसक रही तड़प रही
माँ मेरी तूने तो मेरी रक्षा का,
प्राण-पण से प्रयास किया…
हे माँ, मेरा-तेरा संग तो,
विधाता ने इतने दिन का
ही नियत किया था
मैं तो अत्यंत ऋणी हूँ माँ,
मुझे तेरी ममता की छाँव मिली
नहीं जन्म लिया तो क्या…
मैंने तेरे दुलार-प्यार को जी लिया है।

कैसी खुश थी माँ तुम,
हर पल कल्पना करती रहती थी
मेरे नन्हें-नन्हें पैरों का,
प्यार से ऊन सलाइयाँ लेकर
नन्हें-नन्हें मोजों को
बुनकर कितनी पुलकित हो उठतीं थीं,
पल-पल मैंने तुम्हारी
ममता, अपने प्रति लाड़-प्यार
का अनुभव किया था,
जिस क्षण डॉक्टर ने बतलाया था
कि तुम माँ बनने वाली हो,
कितनी खुश होकर तुमने अपने पेट पर
अपना हाथ फिरा कर चूम लिया था,
मैं तो उस क्षण ही तुम्हारी
ममता से अभिभूत हो उठी थी।

मत रो माँ… मैं तो भाग्यशाली हूँ,
जो मैंने इन अल्प पलों में ही
मैंने सब-कुछ पा लिया,
तुम्हारी ममता की छाँव मिली माँ
तो पुरुष का क्रूर अत्याचार मिला,
अच्छा ही है माँ कि
तुमने मुझे जनम नहीं दिया,
क्या मालूम भविष्य में
कितने कष्ट मिलने लिखे थे,
मेरा एक जन्म तो पूर्ण हुआ
अगले में जो होगा वह
अच्छा ही होगा…
परंतु माँ, तूम्हारी याद अवश्य आएगी।

तुम्हारे आँसू क्या…
हम कभी भूल पाएंगें
शायद कभी नहीं,
कितने सपने तुमने संजोए थे
माँ मेरी तुमने मेरे भविष्य के लिए,
तुम्हारी एक ना चली माँ
पुत्र की इच्छा ने,
माँ क्या… इतना क्रूर बना दिया
नहीं रही भावना मन में,
पुत्र क्या देगा माँ जो
पुत्री ना देगी,
पुत्री तो माँ भावुक होती है
प्यार वह देगी
बेटा क्या धन की गठरी
लेकर आता है माँ…?

हे कायर पुरुष क्यों…
धरा को विनाश की ओर
ले जा रहे,
जब धरती ही ना होगी,
तो बीज कहाँ पर पैदा होंगे ?
कायर पुरुष… क्या तुमने,
महाभारत काल को नहीं देखा
जब एक द्रौपदी के
पाँच पति थे,
क्या तुम फिर से…
उसी स्थिति को लाने के
प्रयास में सहयोगी नहीं बन रहे,
क्यों अपनी ही जड़ पर
कर रहे वार,
कुछ तो सोचो
विचार करो।

अभी भी,
भूल सुधार का क्षण
तुम्हें निहार रहा,
अभी नहीं तो
कभी नहीं…
महाप्रलय में विलंब नहीं,
प्रकृति भी अपना विकराल रूप दिखा रही,
कभी भूकंप कभी तूफान…
तो कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि,
सभी संकेत दृष्टिगोचर रहे
मानव किंचित स्वार्थी बनकर,
असंतुलन द्वारा ही प्राकृतिक
नियमों का उल्लंघन कर अपने
ही अंत का उपाय कर रहा।

हे माँ तुमसे विनती है…
ऐसी अलख जगाओ माँ,
जिससे पुत्र और पुत्री का भेद मिटे
जीवन हो संतुलित और संयोजित,
ना पुरुष हो क्रूर और अत्याचारी
ना हो स्त्री पर अत्याचार,
रामराज्य स्थापित हो
इस धरती पर फिर से आए
नया सबेरा माँ।
तेरा-मेरा दोनों का जीवन,
होगा तभी सार्थक॥