संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
**********************************
एक बाह्य,एक भीतर
द्वंद यहां इंसानों का,
भीतर से जो दो करे
काज वह विद्वानों का।
संत संतुष्टि हो द्रष्टिगत
युद्ध लड़े हो व्यक्तिगत,
अंतर्मन द्वंद हो भारी
‘मैं’ से ‘मैं’ तक उत्थानों का।
मुख मण्डल हो गोचर
विजय पताका ले चला,
ललाट ले आभा शोभित
नाश कर अभिमानों का।
ले मौन चित्त,हो गौन खुद
अंतर्मन को करता शुद्ध,
तर्क वितर्क खुद से खुद के
उर श्मशान बने विकारों का।
मन और विचारों को
धागा एक पिरो डाले।
बना हार गले पहने,
काज यह विद्वानों का॥