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कुछ तो रहने दो

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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नया उजाला-नए सपने…

यह नया साल हमारा और वह तुम्हारा,
हैप्पी न्यू ईयर, नव संवत्सर की बधाई
जश्न तो नए साल का है दोनों जगह पर,
फिर भी है भावों और विचारों की लड़ाई।

न जाने क्यों नफ़रत-सी होती है मन में मुझे,
अंग्रेजी नव वर्ष के हर एक बधाई संदेश से
जब ये नहीं मानते हैं नव संवत्सर हमारा तो,
मैं कहीं धोखा तो नहीं कर रहा हूँ स्वदेश से ?

हम क्यों भूल दें जी सनातन तहजीब हमारी ?
और उपनिवेशवादियों का सब अपनाते चले
भौतिक वैभव तो लूट ही गए थे हमारा ये सब,
और आज भावों से भी जाए क्यों हम ही छले ?

आज मंजूर है मुझको इनका हर त्यौहार मानना,
पर ये भी तो हमारे पर्वों को मिल-जुल कर मनाएं
पर हाँ, यह तो नहीं चलेगा कि हर बार ये इठलाएं,
और हम हमेशा बस यूँ ही मौन रह मुँह की खाएं।

ताली कहां सुना है बजाते, तुमने एक हाथ से भाई,
आओ मिलकर मित्रवत दोनों ही हाथों से बजाएं
हमने अपनाया आपका बहुतेरा है जी आज तक,
तुम भी तो संस्कृति का कुछ हमारी जी अपनाएं।

हमारे नव संवत्सर में मौसम नूतन वसंत है आता,
तुम्हारे नव वर्ष में आती महज पतझड़ और सर्दी
अपनाने दो हमें भी कुछ अपनी ही संस्कृति का,
तुम्हारी नकल की तो हमने आज हद ही है कर दी।

लिबास तुम्हारे हैं, है हर एक अजब अंदाज़ तुम्हारा,
हमारे पास तो आज बचा ही क्या-कुछ है हमारा ?
अन्दर से बाहर, कुछ भी देखो,पैंट-कोट चाहे शरारा,
चिन्तित हूँ कि क्यों रंगा है पछुआ रंग में देश हमारा ?

फैला दिया है जैसे रायता-सा मेरे देश में तुमने आज,
छोड़ा ही क्या है तुमने आज शेष, बाकी देने- लेने को ?
कुछ तो रहने दो हमारे भी शेष अपनी संस्कृति का,
हमारे पास भी कोई थाती हो, नई पीढ़ी को देने को॥