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कैसा गिला

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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जिसके हाथ में पत्थर था, मैं उसी से मिला,
जो खाली हाथ हो, उससे कैसा गिला ?

वक्त-वक्त की बात है, देखिए तो सही जरा,
साया ही करता, परछाई से गिला।

बर्बाद होना नहीं चाहता हूँ, अब इश्क में,
दाग बेवफाई के दामन में ना मिला।

सजदा तो एक, मैंने भी किया था उस चाँद को,
क्या करता, कोई जवाब न मिला।

जिंदगीभर तलाशोगे, मुझ-सा सहारा,
कि किनारे पर होकर भी किनारा ना मिला॥