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गम भरा घूँट

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हाय वृद्धावस्था तू कहाँ से आई, गम भरा घूँट पिलाया,
छीन लेता है हँसी-खुशी तन मन, अन्त में बेड पकड़ाया।

काश! ये पहेली जान पाती, बुढ़ापा रात-दिन रुलाएगा,
बाबा या भैया, काया हो चाहे रिश्ता हर रुठ जाएगा।

साठ के बाद वृद्धावस्था में, विरले ही कोई अपना होता है,
क्यों धन कमाया, उम्र गंवाई, खुद जनमा पराया होता है।

वृद्धावस्था के कितने आँसू रखे हैं प्रभु, आप तिजोरी में,
कितने काल तक रखेंगे, गम का दरिया आप तिजोरी में।

मिटा दे प्रभु वृद्धावस्था का दुःख, युवा की औकात भर देना,
भले दौलत से निर्धन कर देना, पर शक्ति बर्बाद ना कर देना।

युवा समान बुढ़ापे में भी, खुद कमा कर मैं खा सकूं,
हे प्रभु दो रोटी के लिए, आश्रित किसी पर ना रह सकूं।

वक्त बलवान होता है, लेकिन काया बलहीन नहीं करना,
वृद्धावस्था दे देते हो तो, साथ भी किसी को रहने देना।

करबद्ध प्रार्थना करती है दासी ‘देवन्ती’, बुढ़ापा ना देना,
जो भूल-चूक होती है मनुष्य से, आप उसे क्षमा करना।

उठाइए प्रभु, अपनी वसुन्धरा से वृद्धावस्था का निशान,
आप जब चाहेंगे ईश्वर, तब हम मानव का होगा कल्याण॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |

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