संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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रचनाशिल्प:मात्रा २८, १६-१२ यति, अंत दो गुरू
एक दूजे में हम रच गये, बनती गयी कहानी।
गीत प्रेम के मैंने गाए, हो गयी मैं दिवानी॥
प्रेम पाश में बांधा मुझको, बाँहें मेरी पकड़ी,
प्रेम जाल एक विकट जाला, खुद फंस जाती मकड़ी।
हर दिन अब तो खुशियाँ भर दे, रात लगती सुहानी,
गीत प्रेम के मैंने गाए…॥
सुध-बुध मैं तो अपनी भूली, लोक-लाज सब खोयी,
नित दिन मेरे आँसू बरसे, रातों को ना सोयी।
सावन भी अब आग लगाये, होती यही जवानी,
गीत प्रेम के मैंने गाए…॥
मेरे उजड़े दिल में साजन, प्रेम पौध यह रोपा,
जो कुछ भी था मेरा अपना, वह सब तुमको सौंपा।
जो सुनाया एक-दूजे को, हर बात वही मानी,
गीत प्रेम के मैंने गाए, हो गयी मैं दिवानी…॥
परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।