दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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नन्हा बालक फुटपाथ पर,
बेच रहा है गुब्बारे
ले लो भाई गुब्बारे,
रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे।
नहीं जानता वह,
क्या होता है बाल श्रम ?
वह जाने बस भूख को,
जिसे मिटाने बेचता गुब्बारे।
रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे…
सड़क पर भाग-भाग कर,
कार के शीशों से झाँककर
हाथ जोड़ मिन्नत करता,
मुझसे लेलो गुब्बारे।
रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे…
अभावों की आग में,
बचपन अपना खाक कर।
कानून (बाल श्रम निषेध) की धज्जियाँ उड़ाकर,
बेच रहा वह गुब्बारे॥
रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे…