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जलते चिराग

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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ख़ुदगर्ज़ सब रफीक फरामोश हो गए।
कुछ वक़्त के साए में भी बेहोश हो गए।

महफिल में उनके आने की चर्चा सुनी मैंने,
हम तो उसी खबर पे ही पुरजोश हो गए।

पलकों पे जो सजते थे, दिखते नहीं मुझे,
लगता है मुझको ऐसे कि बा-होश हो गए।

अब तक तो जिसने नाम की चर्चा सुनी मेरे,
देखा मुझे तो आज वो मदहोश हो गए।

यादों की कहानी थी या जज़्बों का फ़साना,
लेकिन वो आज सब ही बलानोश हो गए।

‘शाहीन’ की यादों में भी जलते चिराग थे,
बेवक़्त की आँधी में वो खामोश हो गए॥