बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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जाग गए हैं
सूर्य नारायण,
तुम क्यों अब तक सोते हो ?
खिल उठे कमल सरोवर
समय सलोना क्यों खोते हो…?
कमलों पर यूँ
बिखर रजत कण,
रश्मियों सँग
होते जगमग,
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर
क्या तुम अनोखे हो…।
उठा के हल,
कृषक चले
मरुभूमि भी उपजाऊ बने।
धन्य हो कृषक तुम,
धरा में श्रम के मोती बोते हो…॥
