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जीवन सीख न पाते

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:मुखड़ा-१६,१२ मात्राओं की यति पर २८ मात्रा के २ पद। प्रत्येक पद में १२ मात्राओं का टेक। अंतरा-२८ (१६+१२) मात्राओं के ३ पद। फिर १२ मात्राओं का टेक।

धरती, अम्बर, नदियाँ, सागर, धीरज गुण अपनाते।
धीरज गुण अपनाते…।
देखें समझें फिर भी गुण ये, जीवन सीख न पाते।
जीवन सीख न पाते॥

हर जीवन चाहे इस जग में, सुख से बीते हर क्षण,
पर जीवन त्यागे स्वार्थी मन, फिर भोगे शुभ लक्षण।
किसने देखे पावन समय जो, हर क्षण साथ निभाते,
जीवन सीख न पाते…॥
धरती, अम्बर…

युग बीते युग अवतारी बन, राम-कृष्ण प्रभु आए,
मानवता की लीला करके, दानव मार भगाए।
अब धरती में फिर से जीवन, दानव गुण अपनाते,
जीवन सीख न पाते…॥
धरती, अम्बर…

धरती के रक्षक वन-पर्वत, क्यों जीवन से मिटते,
अम्बर में हैं सूर्य-चन्द्रमा, जो जीवन बिन सजते।
किरणें स्वर्ण-रजत जैसी ये, धरती में बिखराते,
जीवन सीख न पाते…॥
धरती, अम्बर…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।