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तुम तो हो परदेस पिया जी…

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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सूने महल अटारी सूनी, मन का आँगन सूना है।
तुम तो हो परदेस पिया जी, मेरा सावन सूना है॥

जबसे तुम परदेस सिधारे, मन को चैन नहीं मिलता,
बिन पानी अरु बिन माली के, सरसिज कभी नहीं खिलता।
तुम बिन ये सावन है फीका, दर्द हृदय में दूना है,
तुम तो हो परदेस पिया जी, मेरा सावन सूना है…॥

तुम क्या जानो कैसे बीती, सर्द सुहानी वो रातें,
ग्रीष्म गई सावन है आया, और निगोड़ी बरसातें।
दग्ध हृदय को और जलाता, ये मनभावन सूना है,
तुम तो हो परदेस पिया जी, मेरा सावन सूना है…॥

जाने किस सौतन ने रोका, घर की याद नहीं आती,
यहाँ अकेली मैं जलती हूँ, तेल बिना जैसे बाती।
बाट तकूँ मैं कब से साजन घर बिन पाहुन सूना है।
तुम तो हो परदेस पिया जी, मेरा सावन सूना है…॥

आया ये झूलों का मौसम, झूला कौन झुलाएगा,
चंचल मन नहिं सुने किसी की,कौन इसे समझाएगा।
दीपक में नहिं तेल पलंग भी, बिना बिछावन सूना है।
तुम तो हो परदेस पिया जी मेरा सावन सूना है…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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