शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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अटलबिहारी वाजपेयी विशेष….
ऐ अटल! रहा तू सदा अटल नहीं कोई तुम्हें झुका पाया,
तू अडिग रहा चट्टानों-सा नहीं कोई तुम्हें हिला पाया।
अपनी धुन के पक्के थे तुम जो भी सोचा कर के माने,
हैं धन्य भारती माँ जिसने था लाल तेरे जैसा पाया।
तुम थे प्रकाश के पुंज सदा आलोकित था सारा भारत,
इस तिमिर भरे भारत नभ पर तू सूरज-सा बनकर छाया।
साहित्य सरोवर में खिलते सरसिज़ तेरी रचनाओं से,
बंधुत्व भाव और देश प्रेम कविताओं में तेरी छाया।
ना बैर किसी से किया कभी भाईचारे के हामी थे,
तब तुमने भारत-पाक बीच में वाहन एक चलाया।
परमाणु परीक्षण किया पोखरण में जग को समझाने को,
कमज़ोर नहीं भारत मेरा तुमने दुनिया को दिखलाया।
तुम थे भारत के रत्न अटल संसद के सांसद श्रेष्ठ सदा,
थे पद्मविभूषण सम्मानित फिर भारत रत्न बड़ा पाया।
कर दिया समर्पित जीवन को भारत माता के चरणों में,
हर जनमानस के हृदय में बस एक अटल ही था छाया।
तुम थे भारत के कोहिनूर,अब याद बहुत ही आते हो,
कर जन्मदिवस पर याद तुम्हें आँखों में पानी भर आया।
तुमने क्या क्या था किया देश हित कितने और गिनाऊँ मैं,
बस अश्रु भरी आँखें हाथों में पुष्प अंजुरी भर लाया॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है