डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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गर यह दिल तुझ पे आता नहीं,
तू भी दिल को दुखाता नहीं।
तेरी आदत है कितनी बुरी,
रूठने पे मनाता नहीं।
जिंदगी के सफर में कोई,
इस तरह छोड़ जाता नहीं।
इस तरह छोड़ जाना ही था,
सोये अरमां जगाता नहीं।
एक अर्सा हुआ है तुझे,
अपना चेहरा दिखता नहीं।
बेवफा तुझको होना था गर,
पहले दिल को लगाता नहीं।
रात दिन अश्क ‘शाहीन’ दिए,
अब गली में भी आता नहीं॥