डॉ. अमलपुरे सूर्यकांत विश्वनाथ
रायगढ़ (महाराष्ट्र)
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श्रम आराधना विशेष…
है मजदूर तू है सृजनकार,
गगन चुम्बी इमारत खड़ी है आपके श्रम पर।
घर सबके बनाते हो आप,
झोपड़ी में जिंदगी बिताते हो आप।
खेत में अनाज उगाते हो आप,
घर में दिखता नहीं कोई अनाज का दाना
फिर भी खुश रहते हो आप।
खाली है आपका पेट, जैसे उपवास रखा हो,
विश्व के अनाज भंडार के आप ही विश्वकर्मा हो।
‘मजदूर दिवस’ पर करते हैं आपको वंदन,
हो जाए विकास और अच्छे घरों का प्रबंधन।
सूखी रोटी खाते हो आप,
दूसरों को ताजा अनाज देते हो।
फटे वस्त्र पहन कर आप,
देश के लिए नए वस्त्रों का भंडार हो आप।
मजदूर करता है श्रम दिन-रात,
धूप-छाँव-सी जिंदगी और आँखों में बरसात।
मंदिर-मस्जिदों का निर्माण करता है तू,
सड़क, मधुशाला, पाठशाला का भी निर्माण करता है तू।
अंत में मजदूर कहता है- “अपमानित मुझे मत करना यारों,
सिर्फ मजदूर नहीं श्रम का देवता भी हूँ मैं॥”