सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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प्रेम पर लिखूं, इश्क को गाऊं
काले तिल की महिमा बताऊं,
आत्मा अभी मरी न इतनी…
राष्ट्र शोक में चुप रह जाऊं।
सबका दुःख महसूस करूं
चीथड़े देखकर अश्क़ बहाऊं,
ईश्वर ने गर कलम थमाई…
हर इंसा का दर्द लिख जाऊँ।
कलम को हथियार बना लूँ
अश्कों की स्याही भर पाऊं,
जितने भी घर कल उजड़े हैं…
उस पर मलहम अभी लगाऊं।
इतनी सहनशक्ति न पाऊं
कविता को आवाज़ बनाऊं,
कर्ण के पर्दे आज फाड़कर…
सोते न्याय को अभी जगाऊँ।
कवि हृदय नमी जो पाऊं,
अखियों से गंगा ही बहाऊं।
उफनती उन लहरों में डुबोकर,
अमानुष पाताल लोक पहुंचाऊं॥
