पुस्तक परिचर्चा…
दिल्ली।
दिव्या माथुर की कहानियाँ अपनी सीधी और सहज भाषा के कारण विशेष रूप से प्रभावशाली बनती हैं। इन कथाओं में पितृसत्ता का प्रश्न बिना किसी पक्ष–पक्षधरता के सादगी से प्रस्तुत हुआ है, साथ ही कथाओं में पूर्वानुमान की उपस्थिति इन्हें और अधिक अर्थपूर्ण बनाती है। लेखिका किसी एक दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करतीं, बल्कि कहानी को निष्पक्षता से सामने लाती हैं।
यह बात अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ कथाकार उदय प्रकाश ने कही। अवसर रहा कस्तूरी द्वारा आयोजित साहित्यिक श्रृंखला ‘किताबें बोलती हैं:सौ लेखक, सौ रचना’ के अंतर्गत ६ दिसंबर को साहित्य अकादमी सभागार (नई दिल्ली) में सुप्रसिद्ध कथाकार दिव्या माथुर के कहानी संग्रह ‘मायाजाल’ पर पुस्तक (प्रभात प्रकाशन) परिचर्चा का, जिसमें मुख्य अतिथि कवि एवं आलोचक अनामिका जी रहीं। वक्ताओं में शिक्षाविद किरण नंदा, कथाकार अंजू वेद तथा शिक्षाविद गीता पाण्डेय सम्मिलित हुई।
वक्ता गीता पाण्डेय ने कहा कि विदेशी परिवेश में रची गई लेखिका की सत्रह कहानियों में भारतीय जीवन मूल्यों का सशक्त प्रारूप उभरकर आता है। शीर्षकों में किया गया नवीन प्रयोग उनकी संवेदना को प्रभावी रूप में उकेरता है और पाठकों को आकर्षित करता है।
अंजू वेद ने कहा कि ये कहानियाँ पाठक के मन में सहज ही जगह बना लेती हैं और उन्हें अंत तक जोड़े रखती हैं। ब्रिटेन की पृष्ठभूमि पर आधारित इन कथाओं में बुजुर्गों की स्थितियाँ, लड़कियों और लड़कों के बीच अंतर, सांस्कृतिक भिन्नताएँ, पंजाबी संस्कृति की छवियाँ, सामाजिक दबाव तथा भय के विभिन्न आयाम प्रभावशाली रूप में उभरते हैं।
वक्ता किरण नंदा ने कहा कि इन कहानियों में भारतीय परिवेश प्रत्यक्ष–अप्रत्यक्ष रूप से उपस्थित है और प्रवासी जीवन का नॉस्टेलजिआ गहराई से झलकता है। ये कथाएँ मानवता को सर्वोपरि मानते हुए जीवन की भागदौड़, चिकित्सीय षड्यंत्र, नर–नारी संबंध, समझौते, बुजुर्गों का अकेलापन और अवसाद जैसे यथार्थों को प्रभावी ढंग से उभारती हैं।
अनामिका जी ने कथाओं की मार्मिक प्रकृति पर बात करते हुए अज्ञेय और राहुल सांकृत्यायन के संदर्भों का उल्लेख किया। उन्होंने मृत्युबोध की सूक्ष्म अनुभूति पर चर्चा करते हुए कहा कि ये कहानियाँ जीवन की सीधी, स्पष्ट और अनावृत्त धारा की तरह प्रवाहित होती हैं। उनके अनुसार, स्त्री मुक्ति का मार्ग उसे पुरुष–प्रधान अवधारणाओं से परे एक स्वतंत्र चेतना प्रदान करता है, जहाँ पूर्वाग्रहों के विरुद्ध संघर्ष ही उसके अस्तित्व की वास्तविक पहचान रचता है।
इस अवसर पर प्रसिद्ध कथाकार, आलोचक, संपादक, वक्ता, शोधार्थी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
संचालन साहित्य एवं कला अध्येता विशाल पाण्डेय ने कुशलता से किया। समापन में दिव्या माथुर ने सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।
