डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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न आप अंग्रेज, न मैं अंग्रेज,
न ही, अंग्रेजों का त्योहार
फिर मुझे शुभकामनाएँ अंग्रेजी में,
क्यों देते हर बार ?
दीपों के आलोक में, करें विचार..।
अगर आप चाहते हैं,
आपकी शुभकामनाएँ,
मेरे हृदय पटल तक जाएँ,
तब मुझे अपनी या मेरी वाणी में,
दें बधाई और शुभकामनाएँ।
क्यों बने किसी के मानसिक गुलाम,
हमें स्वाधीन हुए अब तो
पचहत्तर वर्ष हो रहे पार,
दीपों के आलोक में, करें विचार…।
आओ मन मंदिर में आज,
विचार की नवजोत जलाएँ,
दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
स्वभाषा में स्व उद्गार,
दीपों के आलोक में, करें विचार…॥