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द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तुति

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सोमनाथ सौराष्ट्र में,करुणाकर अवतार।
चारु चन्द्र धर शिखर शिव,गंगाधर संसार॥

उच्च शिखर श्रीशैल पर,प्रमुदित देव निवास।
पूज्य मल्लिकार्जुन सदा,बाघम्बर कैलास॥

अकाल मरण रक्षक प्रभु,मोक्ष प्रदाता सन्त।
महाकाल उज्जैन में,महिमा नमन अनंत॥

कावेरी नर्मद मिलन,पावन निर्मल धार।
करुणाकर ओंकार जग,भवसागर हो पार॥

चिताभूमि पूर्वोत्तरी,सदा वास गिरिजेश।
देवासुर पूजित सदा,बैद्यनाथ परमेश॥

कंठहार नागेश शिव, दक्षिण क्षेत्र निवास।
भक्ति मुक्तिदाता स्वयं,नागेश्वर कैलास॥

बसे सदा केदार तट,नीलकंठ केदार।
मुनि देवासुर यक्ष अहि,पूजित शिव संसार॥

दर्शन दे पातक हरे,सह्यशिखर शिव धाम।
शिव त्र्यम्बकेश्वर बसे,बोलो बम अविराम॥

सेतु बना निज बाण से,उच्छल जलधि तरंग।
रामेश्वर शिव धाम बस,राम भक्ति नवरंग॥

भूत-प्रेत सेवित सदा,नमन करूँ करुणेश।
डाकशाकिनी वृन्द में,शंकर भीम जटेश॥

विश्वनाथ पूजन करूँ,काशीपति भगवान।
हरो पाप पातक मनुज,शरणागत वरदान॥

शिव ज्योतिर्मय शिव स्वयम,इलापुरी रनिवास।
घृष्णेश्वर समुदार शिव,करूँ नमन उपवास॥

पूजन विधि पूर्वक करूँ,बेल धतूरा भांग।
थाल सजा शिव आरती,नमन करूँ साष्टांग॥

कर ताण्डव विकराल बन,धर त्रिशूल अरि नाश।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग शिव,त्रिपुरारी जन आश॥

सत्य शिवम नित सुन्दरम,सुखमय हो संसार।
महाकाल गौरीश तव,महिमा अपरम्पार॥

बाघम्बर विश्वेश शिव,करें जगत कल्याण।
रोग शोक परिताप से,शिवशंकर कर त्राण॥

शिव की महिमा का किया,जिसने भी गुणगान।
पाप त्रिविध संत्रास बिन,सुखद विभव यश गान॥

शिव महिमा गायन श्रवण,मंगलमय शिवरात।
फलाहार उपवास रख,देख शम्भु बारात॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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